लेखांकन का परिचय एवं परिभाषा एवं सिद्धान्त

  • 1494 में लुकास पैसियोली ने लेखांकन के संबंध में अपनी पुस्तक "द कम्पासेट स्क्रिपचर्स" में लेखांकन का वर्णन किया था इसलिए लुकास पैसियोली को लेखांकन का जन्मदाता कहा जाता है तथा लुकास पैसियोली एक गणितज्ञ था।
  • 1543 में ह्यूज होल्ड कैंसिल ने लुकास पैसियोली द्वारा लिखी गई पुस्तक का सर्वप्रथम अंग्रेजी अनुवाद किया था।
  • 1795 में एडवर्ड जॉन्स के द्वारा लेखांकन के संबंध में सर्वप्रथम अंग्रेजी पद्धति पर अपनी पुस्तक "इंग्लिश सिस्टम ऑफ एकाउंटिंग" में वर्णन किया था 
नोट - लेखांकन जन्म के समय को बेबीलोनिया की सभ्यता को वाणिज्य नगरी कहा जाता है।

लेखांकन का अर्थ

लेखांकन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यवसाय में होने वाले लेनदेनों को दर्ज करना उनका वर्गीकरण करना या उनका सारांश ज्ञात करके अंतिम परिणाम निकाला जाता है इस प्रक्रिया को लेखांकन कहा जाता है।

नोट - 
  • बुक कीपिंग लेखांकन के एक भाग होता है 
  • व्यवसाय में विभिन्न प्रकार के लेनदेनों के खाते रखने की प्रक्रिया को बुक्कीपिंग कहते हैं 
  • बुक कीपिंग का कार्य समाप्त होने पर एकाउंटिंग का कार्य प्रारंभ होता है 
  • एकाउंटिंग का कार्य समाप्त होने पर ऑडिटिंग का कार्य प्रारंभ होता है 

लेखांकन की अवधारणाएं 

लेखांकन अवधारणा के सिद्धांत नियम, कानून, परंपराएं एवं मान्यता होती हैं जिनके आधार पर लेखांकन कार्य किया जाता है यह अवधारणा स्वयं सिद्ध होती हैं जिनके ऊपर किसी प्रकार का प्रश्न उत्पन्न नहीं होता है किंतु लेखांकन अवधारणा कानून से ऊपर नहीं होती हैं।

1. पृथक अस्तित्व अवधारणा 

इस अवधारणा के आधार पर व्यापार तथा व्यापारी दोनों का अस्तित्व अलग-अलग माना जाता है इस अवधारणा के आधार पर व्यापारी के व्यक्तिगत खर्चों को व्यापार की पुस्तकों में नहीं दिखाया जाता है 
नोट -
  • इस अवधारणा को सत्ता की अवधारणा कहा जाता है 
  • इस अवधारणा के आधार पर एक व्यापारी अपने व्यापार का लेनदेन या देनदार दोनों हो सकता है क्योंकि जब व्यापारी व्यापार में पूंजी लगाता है तो लेनदार बन जाता है तथा व्यापार से आहरण करने पर देनदार बन जाता है 
  • इस अवधारणा के आधार पर पूंजी खाते तथा आहरण खाते को प्रतिनिधित्व व्यक्तिगत खाता कहा जाता है 
  • इस अवधारणा के आधार पर एक व्यापारी अपने नाम के स्थान पर पूंजी खाता अथवा ड्राइंग खाता शब्द का प्रयोग करता है 

2. मुद्रा की अवधारणा 

इस अवधारणा के आधार पर व्यापार में केवल उन्हीं लेनेदेनों का लेखा-जोखा किया जाता है जिन्हें मुद्रा में मापा जा सकता है
नोट -
  • इस अवधारणा के आधार पर व्यापार में केवल मात्रात्मक व्यवहारों का लेखक किया जाता है गुणात्मक व्यवहारों का लेखा नहीं किया जाता है 
  • इस अवधारणा के आधार पर वस्तु विनिमय का लेखा नहीं किया जाता है 
Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url